ग्यारह दिनों से देश एक सामाजिक और राजनीतिक उथल पुथल से जूझ रहा है. अन्ना हजारे जी की अगुवाई में पूरे देश ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक जंग छेड़ दी है. लोगों के अन्दर एक आक्रोश व्याप्त है, बारह दिनों से अन्ना हजारे जी का अनशन जारी है, अनशन के साथ साथ लोगों का गुस्सा भी बढ़ता जा रहा है. लोग हाथों में तिरंगा लिए और सिर पर गाँधी टोपी पहने सड़कों पर उतर आये हैं. ऐसा नहीं है की जो लोग सड़कों पर उतरे हैं केवल वाही भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ हैं, लोगों का गुस्सा बसों में, रेल में, ऑफिस की काफी टेबल पर, छात्रों में, और घर में टीवी के सामने बैठे हर व्यक्ति में देखा जा सकता है. लोग गली मोहल्ले में अपने स्तर पर विरोध प्रकट कर रहे हैं. सरकार इस बात को गंभीरता से नहीं ले रही है.
इस विवाद के गहराने का मुख्य कारण ये है की सांसद और अन्ना तथा अन्ना क समर्थक संविधान को दो अलग अलग नज़रिए से देख रहे हैं. अन्ना का कहना है की जनता सांसदों को चुनकर संसद में भेजती है और हर सांसद अपने संसदीय क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधि होता है और वो संसद में अपनी जनता के विचारों को प्रकट करता है. जनता इस संसदीय व्यवस्था में सर्वोपरि है जबकि सांसदों का मानना है की जनता ने जिसको एक बार चुनकर संसद में भेज दिया वो अपने कार्यकाल के दौरान इस व्यवस्था में सर्वोपरि हैं और उनका हर निर्णय जनता को मान्य होना चाहिए.
सबसे बड़ा सवाल उठता है सरकार की कार्य प्रणाली पर, जिस तरह इस मुद्दे पर सरकार का अब तक का रुख रहा है उससे ये लगता है की सरकार के पास इस प्रकार की परिस्थितियों से निपटने के लिए कोई योजना नहीं है. इस पूरे मुद्दे पर सरकार और दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ बौखलाती हुई नज़र आई. ज्यादातर सांसद और राजनीतिक हस्तियाँ इस आन्दोलन के ख़िलाफ़ नज़र आई, सबको लग रहा है की उनका अधिकार छीन जायेगा.
सबसे बड़ी निराशा हुई कांग्रेस महासचिव राहुल गंध से, जिनको कांग्रेस इस देश का भावी प्रधान मंत्री मानती है, पूरे ग्यारह दिन तक उन्होंने चुप्पी साध रखी थी ऐसा नहीं है की वो जादा कुछ नहीं बोलते, भट्टा पारसोल ज़मीन विवाद पर वो खूब बोलते नज़र आये, क्योंकि कांग्रेस को वहा पर आगामी चुनावो में राजनीतिक फायदा नज़र आ रहा है. ग्यारह दिन बाद जब वो इस मुद्दे पर बोले तो तो पूरे मुद्दे को एक नया रुख दे दिया जो की इस समय इस समस्या का कोई हल नहीं है उनका कहना था की ये विचार उन्होंने बहुत सोच समझकर प्रस्तुत किया है. कुछ दिन पहले उन्होंने गरीबों के साथ सिर पर मिटटी ढोने का दिखावा किया था. इस सब को देखकर ये लगता है की उनके अन्दर दूरदर्शिता और समझ की बहुत ही कमी है, वो चीजों का राजनीतिक फायदा उठाने के बारे में जादा सोचते हैं देश हित में कम. आज के परिपेछ्य में देखा जाय तो उनकी संसद में कोई जगह नहीं है और देश को ऐसे प्रधान मंत्री की कोई ज़रुरत नहीं है
अगर दूसरी राजनीतिक पार्टियों को देखें तो बीजेपी और अन्य विपक्षी पार्टियों के पास आगामी चुनाव में इस मुद्दे को राजनीतिक लाभ उठाने का पूरा मौका है लेकिन वो इस मुद्दे पर दोहरी राजनीती करते नज़र आये हैं, दरअसल सबको लगता है की अगर भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया तो सत्ता में क्या रखा है, वो केवल जनता के नौकर ही बनकर रह जायेंगे.
इस मुद्दे को अगर शीघ्र हल नहीं किया गया तो ये आन्दोलन व्यापक रूप ले सकता है. धन्यवाद अन्ना और उनके समर्थकों का जिन्होंने इस आन्दोलन को अभी तक अहिंसक बनाये रखा है, अगर ये आन्दोलन हिंसक रूप ले लेता है तो ये देश हित में अच्छा नहीं होगा.
इस दौर में कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई पड़ता जो निःस्वार्थ जनता का प्रतिनिधि बनकर देश हित और जन हित में कार्य कर सके, लगभग चालीस प्रतिशत नेताओ के ख़िलाफ़ क्रिमिनल केस दर्ज हैं, इस पूरे सिस्टम को बदलकर हमें ऐसे नेता का चुनाव करना होगा जो भ्रष्टाचारी न हो और सामूहिक मंच पर अपनी जनता के विचारों को रख सके. इसके लिए इस देश को बहुत बड़े बदलाव की जरुरत है, कानून व्यवस्था को सख्त बनाना होगा, गाँव-गाँव और शहर-शहर जा कर लोगों को जागरूक करना होगा, इस काम के लिए एक अन्ना हजारे काफी नहीं हैं हम सबको आगे बढ़कर एक जन जागरण आन्दोलन चलाने की ज़रूरत है.